- तमाल घोषाल
सपना देखा था कभी चाँद को छूने का,
पर चांदनी में ही जल गए ।
मोम जो जलके देती थी रौशनी -
वक़्त के ताप में पिघल गए।
क्या खोया और क्या पाया - बस हिसाब करते रह गए,
दिल के अरमां आसुओं में बह गए।
दफ्तर में घिसके एड़िया अपनी, जीवन यूँ ही बीत रहा ।
खींचा तानी के खेल में, कभी उम्मीद कभी हताशा जीत रहा ।
मालूम न हुआ इस जीवन का, मकसद आखिर क्या हैं ?
क्यों इस धरती पर हम आते हैं?
जीवन को जीने के लिए कमाते हैं या -
कमाने को जीए जाते हैं?
अँधेरा इतना घना हैं तो, सवेरा भी करीब होगा,
मेहनत रंग लाएगी कभी, चमकीला अपना भी नसीब होगा ।
संतुलन जीवन का अपना, स्वयं ही बनाना होगा ।
क्योंकि - चाहे कितनी भी करले देवों की उपासना ।
साक्षात् भगवन की वाणी हैं उपासकों से -
कर्मण्येवाधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन।