Tuesday, March 2, 2021

कर्म और महत्वाकांक्षा

 

-         तमाल घोषाल

 

सपना देखा था कभी चाँद को छूने का,

पर चांदनी में ही जल गए । 

मोम जो जलके देती थी रौशनी -

वक़्त के ताप में पिघल गए।

क्या खोया और क्या पाया - बस हिसाब करते रह गए,

दिल के अरमां आसुओं में बह गए।

 

दफ्तर में घिसके एड़िया अपनी, जीवन यूँ ही बीत रहा

खींचा तानी के खेल में, कभी उम्मीद कभी हताशा जीत रहा ।

मालूम न हुआ इस जीवन का, मकसद आखिर क्या हैं ?

क्यों इस धरती पर हम आते हैं?

जीवन को जीने के लिए कमाते हैं या -

कमाने को जीए जाते हैं?

 

अँधेरा इतना घना हैं तो, सवेरा भी करीब होगा,

मेहनत रंग लाएगी कभी, चमकीला अपना भी नसीब होगा

संतुलन जीवन का अपना, स्वयं ही बनाना होगा

क्योंकि - चाहे कितनी भी करले देवों की उपासना

साक्षात् भगवन की वाणी हैं उपासकों से -

कर्मण्येवाधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन।